शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

Prof. sudeep who strengthened the hearts of thousands but made heart sad

 

Prof. sudeep who strengthened the hearts of thousands but made heart sad


Sanjay Gandhi PGI Cardiologist Prof. Sudeep Kumar strengthened the hearts of thousands of people. He is living a good life with the help of heartbeats but he has made the hearts of many people sad. Pro. Sudeep passed away. Pro. Sudeep was a 1989 batch MBBS student of King George's Medical University. After doing MD from here in 1997, he passed DM in Cardiology from SGPGI in 2000. Started serving as a faculty member in the institute itself in 2004. Along with providing relief to patients from heart disease, he was also very active in research. There are more than 225 international research papers.  Clinical Immunologist Prof. Vikas Aggarwal, Nephrologist Prof. Narayan Prasad says that Prof. Sudeep used to do cycling. By bicycle, he covered a distance of 620 km to the world's highest motorable road top, Khardungla (Ladakh).  Gave life to thousands of people. An employee of the institute says that if my mother remained alive for five years, it was because of him. My mother was suffering from heart failure. Recruitment had to be done again and again, but as soon as information was received, recruitment was done and management was done. Dharmesh Kumar, former General Secretary of Employees Federation, says that whenever he went to see someone, he would speak so lovingly that half of the problems would go away just like that. Pro. Sudeep was diagnosed with stomach cancer last year, which was treated, he recovered and returned to work. He remained completely fine for a year. 20 days ago the problem started again and treatment started but this time God had something else in mind. Wife Neema Pant is a senior nursing officer in the institute. The last rites took place at Bhaisa Kund at 3 pm. All the people of the institute and the society bid their crimination with tearful eyes.

हजारों का दिल को मजबूत बनाने वाले प्रो. सुदीप दुखी कर गए दिल

 

हजारों का दिल को मजबूत बनाने वाले प्रो. सुदीप दुखी कर गए दिल


संजय गांधी पीजीआई   हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार हजारों लोगों का दिल मजबूत कर गए । दिल की धड़कन के सहारे अच्छी जिंदगी जी रहे है लेकिन तमाम लोगों के दिल की दुखी कर गए। प्रो. सुदीप  का निधन हो गया। प्रो. सुदीप 1989  बैच के किंग जार्ज मेडिकल विवि के एमबीबीएस, के छात्र रहे। 1997 यही से एमडी करने के बाद एसजीपीजीआई से 2000 में डीएम  इन कार्डियोलॉजी पास किया। संस्थान में ही 2004 में बतौर संकाय सदस्य से सेवा देना शुरू किया। मरीजों को दिल की बीमारी से निजात दिलाने के साथ शोध में भी बहुत ही सक्रिय रहे। 225 से अधिक इंटरनेशनल शोध पत्र है।  क्लीनिकल इम्यूनोलाजिस्ट प्रो. विकास अग्रवाल , नेफ्रोलाजिस्ट प्रो. नारायन प्रसाद कहते है कि प्रो. सुदीप साइकिलिंग करते थे। साइकिल से ही उन्होंने विश्व के सबसे ऊंचे मोटरेबल  रोड टाप  खारदूंगला (लद्दाख) 620 किमी की दूरी साइकिल से तय किया।  हजारों लोगों को जिंदगी दिया। संस्थान के ही एक कर्मचारी कहते है कि मेरी मां यदि पांच साल जिंदा रही तो वह उनकी देन थी। मेरी मां को हार्ट फेल्योर की परेशानी थी। बार -बार भर्ती होना पड़ता था लेकिन जैसे ही जानकारी मिलती  भर्ती करके मैनेज करते रहे। कर्मचारी महासंघ के पूर्व महामंत्री धर्मेश कुमार कहते है कि जब भी किसी को देखने गए इतने प्यार से बोलते कि आधी परेशानी वैसे ही दूर हो जाती थी। प्रो. सुदीप को पिछले साल पेट में कैंसर का पता चला जिसका इलाज हुआ ठीक होकर काम पर वापस आ गए एक साल तक पूरी तरह ठीक रहे। 20 दिन पहले फिर परेशानी हुई तो इलाज शुरू हुआ लेकिन इस बार ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। पत्नी नीमा पंत संस्थान में वरिष्ठ नर्सिंग आफिसर है । अंतिम संस्कार भैसा कुंड में शाम तीन बजे हुआ। संस्थान और समाज के तमाम लोगों में नम आंखों से अंतिम विदाई दी।

मंगलवार, 10 सितंबर 2024

डेक एक्सपर्ट" से छिप नहीं पाएगा टीबी

 

 

"डेक एक्सपर्ट" से छिप नहीं पाएगा टीबी


 


पीजीआई ने डेक्ट्रोसेल स्टार्टअप के साथ मिल कर तैयार किया एआई पर आधारित एप्लीकेशन


 


रेडियोलाजिस्ट की कमी वाले दूर-दराज के मरीजों टीबी का पता लगाना होगा संभव




 



संजय गांधी पीजीआई के पल्मोनरी मेडिसिन और सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया के मेडिटेक इंडिया के विशेषज्ञों ने मिल कर आर्टीफीशियल इंटेलिजेंस आधारित एप्लीकेशन तैयार किया है। इससे 95 फीसदी तक टीबी के मरीजों को पहचान केवल चेस्ट एक्स-रे के जरिए संभव होगी। पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रो. आलोक नाथ के मुताबिक दूर –दराज इलाके जहां पर एक्सपर्ट रेडियोलाजिस्ट नहीं है वहां एक्स-रे के आधार पर लगभग 30 से 40 फीसदी  टीबी की पहचान नहीं हो पाती है और मरीज छूट जाते है । इलाज न मिलने के कारण वह टीबी से दूसरे लोगों को संक्रमित करते हैं। भारत में हर साल लगभग 2.5 लाख मिसिंग केस हो सकते है।  इस एप्लीकेशन में चेस्ट एक्स-रे का फोटो मोबाइल से खीच कर एप्लीकेशन में लोड करने पर  टीबी की बीमारी की पुष्टि हो जाती है । प्रो. आलोक ने बताया कि तपेदिक (टीबी) वैश्विक स्तर पर संक्रामक रोगों में मृत्यु का प्रमुख कारण है। प्रभावी ढंग से टीबी के प्रबंधन के लिए टीबी रोग वाले व्यक्तियों की शीघ्र पहचान की आवश्यकता होती है। टीबी की पहचान के लिए चेस्ट एक्स-रे की रिपोर्टिंग के लिए कई जगह कुशल पेशेवरों की कमी होती है। इस चुनौती का समाधान करते हुए, हमने "डेक एक्सपर्ट" नाम का नया कंप्यूटर-एडेड डिटेक्शन  सॉफ्टवेयर विकसित किया है जिसे विश्व स्तर पर स्वीकार किया गया है। 


 

4363 मरीजों पर साबित हुई एप्लीकेशन की प्रमाणिकता


 


हमने इस एप्लीकेशन की प्रमाणिकता का अध्ययन किया।  हमने 12 प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों और एक तृतीयक विशिष्ट देखभाल अस्पताल में 4363 व्यक्तियों का चेस्ट एक्स-रे के डाटा  का विश्लेषण किया तो पाया कि डेक एक्सपर्ट की केवल चेस्ट -एक्स-रे के साथ 88 फीसदी तक  टीबी की सही जानकारी देता है। एक्स-रे के साथ साफ्टवेयर में लक्षण भी बताया जाए तो  95 फीसदी तक सही जनाकारी देता है। डेक एक्सपर्ट   टीबी मामलों की शीघ्र पहचान के लिए एक सटीक, कुशल एआई समाधान है।  संसाधन की कमी वाले इलाकों में स्क्रीनिंग टूल के रूप में प्रभावी साबित हो सकता है।  विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2021 कहा था कि 90 फीसदी से अधिक परिशुद्धता वाले सॉफ्टवेयर का राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रमों में इस्तमाल करने की आवश्यकता  है। 

"डेक एक्पर्ट" जैसे सॉफ्टवेयरओं को राष्ट्रीय टीबी उन्मूमल कार्यक्रम में समावेशित करने से मिसिंग केस कम हो सकते हैं। टीबी मरीजों की संख्या कम करने के साथ टीबी उन्मूलन भी संभव होगा।    


 


 


इन्होंने किया शोध

 


पल्मोनरी मेडिसिन के प्रो. आलोक नाथ, प्रो. जिया हाशिम , डा. प्रशांत अरेकरा ,रेडियोलॉजी विभाग के प्रो.  जफर नेयाज़, माइक्रोबायोलॉजी से प्रो. ऋचा मिश्रा ,  सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया (एसटीपीआई) के साथ मिल कर काम करने वाले स्टार्टअप  डेक्ट्रोसेल हेल्थ केयर की सीईओ सॉफ्टवेयर इंजीनियर डा. सौम्या शुक्ला, तकनीकी निदेशक डा. अंकित शुक्ला   डा. मनिका सिंह, आईआईटी कानपुर से डा. निखिल मिश्रा ने ए मल्टी सेंट्रिक स्टडी टू इवेलुएट द डायग्नोस्टिक परफॉर्मेंस ऑफ नोवल सीएडी सॉफ्टवेयर डेक एक्सपर्ट फार रेडियोलाजिकल डायग्नोसिस आफ ट्यूबरक्लोसिस इन नार्थ इंडियन पापुलेशन विशेष को लेकर हुए शोध को इंटरनेशनल मेडिकल जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट ने स्वीकार किया है।