बुधवार, 6 अगस्त 2014
सोमवार, 12 मई 2014
पीलिया
रक्त में लाल कणों की निश्चित आयु होती है | यदि किसी कारण इनकी आयु कम हो जाए और ये जल्दी ही अधिक मात्रा में नष्ट होने लगें तो पीलिया होने लगता है | यदि जिगर का कार्य भी पूरी तरह न हो तो पीलिया हो जाता है | हमारे रक्त में बिलीरुबिन नामक पीले रंग का पदार्थ होता है | यह पदार्थ लाल कणों के नष्ट होने पर निकलता है इसलिए शरीर में पीलापन आने लगता है | त्वचा का पीलापन ही पीलिया कहलाता है | रोग बढ़ने पर सारा शरीर हल्दी की तरह पीला दिखाई देता है | इस रोग में जिगर, पित्ताशय , तिल्ली और आमाशय आदि खराब होने की संभावना रहती है | अत्यंत तीक्ष्ण पदार्थों का सेवन, अधिक खटाई , गर्म तथा चटपटे और पित्त को बढ़ने वाले पदार्थों का अधिक सेवन,शराब अधिक पीने आदि कारणों से वात , पित्त और कफ कुपित होकर पीलिया को जन्म देते हैं| कुछ प्रयोग निम्न प्रकार हैं -----
1- ५० ग्राम मूली के पत्ते का रस निचोड़कर १० ग्राम मिश्री मिला लें, और बासी मुहँ पियें |
2- पीलिया के रोगी को जौं ,गेंहू तथा चने की रोटी ,खिचड़ी ,हरी सब्ज़ियाँ,मूंग की दाल तथा नमक मिला हुआ मट्ठा आदि देना चाहिए |
3- तरल पदार्थों का सेवन अधिक करना चाहिए |
4- रोगी को भोजन बिना हल्दी का देना चाहिए तथा मैदे से बनी वस्तुएं ,खटाई ,उड़द ,सेम ,सरसों युक्त गरिष्ठ भोजन नहीं देना चाहिए |
5- कच्चे पपीते का खूब सेवन करें | पका हुआ पपीता भी पीलिया में बहुत लाभदायक होता है |
6- उबली हुई बिना मसाले व मिर्च की सब्ज़ी का सेवन करें |
7- मकोय के ४ चम्मच रस को हल्का गुनगुना करके सात दिन तक सेवन करें ,लाभ होगा |
8- पीलिया के रोगी को पूर्णतः विश्राम करना चाहिए तथा नमक का सेवन भी कम करना चाहिए |
9- अनार के रस के सेवन से रुक हुआ मल निकल जाता है और पीलिया में फायदा होता है |
10- आंवला रस पीने से भी पीलिया दूर होता है |
केला खाने से आप अपनी पूरी जिन्दगी स्वस्थ्य
भारत में केला हर जगह पाया जाता है और इसकी सबसे
अच्छी किस्में भारत में ही होती हैं | भले ही रोज एक सेब खाने से आप
डॉक्टर के पास जाने से बच सकते हैं, लेकिन केला खाने से आप अपनी पूरी
जिन्दगी स्वस्थ्य रह सकते हैं। रिसर्च के मुताबिक केला आपको कई बीमारियों
से बचा सकता है।
तो आइए जानते हैं केला खाने का स्वास्थ्यलाभ -
१ - केला खिलाड़ियों का प्रिय फल है क्योंकि यह तुरंत एनर्जी प्रदान करता है। सुबह नाश्ते में केला खाने से ऊर्जा बढती है और सूकरोज़, फ्रक्टोज़ और ग्लूकोज जैसे पोषक तत्व भी मिलते हैं। यदि आप दिन भर भूखे प्यासे रहते हैं, तो केवल केला ही खा लें देखिये अन्य फल के मुकाबले केले से तुरंत एनर्जी मिलेगी।
२- केले में प्रोटीन पाया जाता है, जो कि दिमाग को आराम देता है इसलिए डिप्रेशन दूर करने में सहायक है |
३- दूध के साथ केला और शहद मिला कर पीने से अनिद्रा की समस्या दूर हो जाती है।
४- केले में रेशा पाया जाता है, जिससे पाचन क्रिया मजबूत बनती है। गैस्ट्रिक व कब्ज़ की बीमारी वाले लोंगो के लिये केला बहुत प्रभावशाली उपचार है। अक्सर यात्रा के दौरान कब्ज की शिकायत हो जाती है। इसको दूर करने के लिये केला एक अच्छा विकल्प है |
५- केला शरीर के खून में हीमोग्लोबिन को बढाता है। जिससे एनीमिया की शिकायत दूर हो जाती है।वे लोग जो एनीमिया से प्रभावित हैं, उन्हें अपने भोजन में केला शामिल करना चाहिये।
६-केले में पोटैशियम पाया जाता है, जो उच्चरक्तचाप के रोगियों के लिए विशेष लाभकारी होता है| केला खाने से उच्चरक्तचाप सामान्य बना रहता है |
७- दो केले लगभग १०० ग्राम दही के साथ सेवन करने से दस्त व पेचिश में लाभ होता है |
८- केले पर चीनी और इलायची डालकर खाने से खट्टी डकारें आनी बंद हो जाती हैं |
तो आइए जानते हैं केला खाने का स्वास्थ्यलाभ -
१ - केला खिलाड़ियों का प्रिय फल है क्योंकि यह तुरंत एनर्जी प्रदान करता है। सुबह नाश्ते में केला खाने से ऊर्जा बढती है और सूकरोज़, फ्रक्टोज़ और ग्लूकोज जैसे पोषक तत्व भी मिलते हैं। यदि आप दिन भर भूखे प्यासे रहते हैं, तो केवल केला ही खा लें देखिये अन्य फल के मुकाबले केले से तुरंत एनर्जी मिलेगी।
२- केले में प्रोटीन पाया जाता है, जो कि दिमाग को आराम देता है इसलिए डिप्रेशन दूर करने में सहायक है |
३- दूध के साथ केला और शहद मिला कर पीने से अनिद्रा की समस्या दूर हो जाती है।
४- केले में रेशा पाया जाता है, जिससे पाचन क्रिया मजबूत बनती है। गैस्ट्रिक व कब्ज़ की बीमारी वाले लोंगो के लिये केला बहुत प्रभावशाली उपचार है। अक्सर यात्रा के दौरान कब्ज की शिकायत हो जाती है। इसको दूर करने के लिये केला एक अच्छा विकल्प है |
५- केला शरीर के खून में हीमोग्लोबिन को बढाता है। जिससे एनीमिया की शिकायत दूर हो जाती है।वे लोग जो एनीमिया से प्रभावित हैं, उन्हें अपने भोजन में केला शामिल करना चाहिये।
६-केले में पोटैशियम पाया जाता है, जो उच्चरक्तचाप के रोगियों के लिए विशेष लाभकारी होता है| केला खाने से उच्चरक्तचाप सामान्य बना रहता है |
७- दो केले लगभग १०० ग्राम दही के साथ सेवन करने से दस्त व पेचिश में लाभ होता है |
८- केले पर चीनी और इलायची डालकर खाने से खट्टी डकारें आनी बंद हो जाती हैं |
पेट में कीड़े :छुटकारा पाने के कुछ सरल उपाय
पेट में कीड़े
कई बार किन्ही कारणों से पेट में कीड़े हो जाते हैं जिनसे काफी पीड़ा होती है | पेट में पाए जाने वाले कीड़ों के सामान्य लक्षण है --- सोते हुए दाँत पीसना ,शरीर का रंग पीला या काला होना , भोजन से अरुचि , होंठ सफ़ेद होना , शरीर में सूजन होना आदि | तो आइए जानते हैं इनसे छुटकारा पाने के कुछ सरल उपाय :-----
1-अनार के छिलकों को सुखाकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण दिन में तीन बार एक -एक चम्मच लें , इससे पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं |
2 -टमाटर को काटकर ,उसमें सेंधा नमक और कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करें | इस प्रयोग से पेट के कीड़े मर कर गुदामार्ग से बाहर निकल जाते हैं |
3-लहसुन की चटनी बनाकर उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर सुबह -शाम खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं |
4 -नीम के पत्तों का रस शहद में मिलकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं |
5 -कच्चे केले की सब्ज़ी 7 -8 दिन तक लगातार सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं |
6 -तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस दिन में दो बार पीने से पेट के कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं |
7 - अजवायन का 1-2 ग्राम चूर्ण छाछ के साथ पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं | यदि छोटे बच्चों के पेट में कीड़े हो गए हों तो आप उन्हें लगभग आधा ग्राम काला नमक व आधा ग्राम अजवायन का चूर्ण मिलकर सोते समय गुनगुने पानी से दें लाभ होगा |
कई बार किन्ही कारणों से पेट में कीड़े हो जाते हैं जिनसे काफी पीड़ा होती है | पेट में पाए जाने वाले कीड़ों के सामान्य लक्षण है --- सोते हुए दाँत पीसना ,शरीर का रंग पीला या काला होना , भोजन से अरुचि , होंठ सफ़ेद होना , शरीर में सूजन होना आदि | तो आइए जानते हैं इनसे छुटकारा पाने के कुछ सरल उपाय :-----
1-अनार के छिलकों को सुखाकर चूर्ण बना लें | यह चूर्ण दिन में तीन बार एक -एक चम्मच लें , इससे पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं |
2 -टमाटर को काटकर ,उसमें सेंधा नमक और कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करें | इस प्रयोग से पेट के कीड़े मर कर गुदामार्ग से बाहर निकल जाते हैं |
3-लहसुन की चटनी बनाकर उसमें थोड़ा-सा सेंधा नमक मिलाकर सुबह -शाम खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते हैं |
4 -नीम के पत्तों का रस शहद में मिलकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं |
5 -कच्चे केले की सब्ज़ी 7 -8 दिन तक लगातार सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते हैं |
6 -तुलसी के पत्तों का एक चम्मच रस दिन में दो बार पीने से पेट के कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं |
7 - अजवायन का 1-2 ग्राम चूर्ण छाछ के साथ पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं | यदि छोटे बच्चों के पेट में कीड़े हो गए हों तो आप उन्हें लगभग आधा ग्राम काला नमक व आधा ग्राम अजवायन का चूर्ण मिलकर सोते समय गुनगुने पानी से दें लाभ होगा |
मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं
मिर्गी रोग होने के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे- बिजली का झटका लगना,
नशीली दवाओं का अधिक सेवन करना, किसी प्रकार से सिर में तेज चोट लगना, तेज
बुखार तथा एस्फीक्सिया जैसे रोग का होना
आदि। इस रोग के होने का एक अन्य कारण स्नायु सम्बंधी रोग, ब्रेन ट्यूमर,
संक्रमक ज्वर भी है। वैसे यह कारण बहुत कम ही देखने को मिलता है।
मिर्गी एक ऐसी बीमारी है जिसे लेकर लोग अक्सर बहुत ज्यादा चिंतित रहते
हैं। हालांकि रोग चाहे जो भी हो, हमेशा परेशान करने वाली तथा घातक होती है।
इसलिए हमें किसी भी मायने में किसी भी रोग के साथ कभी भी बेपरवाह नहीं
होना चाहिए। खासतौर पर जब बात मिर्गी जैसे रोगों की हो तो हमें और भी सतर्क
रहना चाहिए।
मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।
दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है। हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।
-अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
-मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।
-मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।
-मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।
-रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।
-पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
-गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।
गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है।
मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।
मिर्गी के रोगी अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि वे आम लोगों की तरह जीवन जी नहीं सकते। उन्हें कई चीजों से परहेज करना चाहिए। खासतौर पर अपनी जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन करना पड़ता है जिसमें बाहर अकेले जाना प्रमुख है।
यह रोग कई प्रकार के ग़लत तरह के खान-पान के कारण होता है। जिसके कारण रोगी के शरीर में विषैले पदार्थ जमा होने लगते हैं, मस्तिष्क के कोषों पर दबाब बनना शुरू हो जाता है और रोगी को मिर्गी का रोग हो जाता है।
दिमाग के अन्दर उपलब्ध स्नायु कोशिकाओं के बीच आपसी तालमेल न होना ही मिर्गी का कारण होता है। हलांकि रासायनिक असंतुलन भी एक कारण होता है।
-अंगूर का रस मिर्गी रोगी के लिये अत्यंत उपादेय उपचार माना गया है। आधा किलो अंगूर का रस निकालकर प्रात:काल खाली पेट लेना चाहिये। यह उपचार करीब ६ माह करने से आश्चर्यकारी सुखद परिणाम मिलते हैं।
-मिट्टी को पानी में गीली करके रोगी के पूरे शरीर पर प्रयुक्त करना अत्यंत लाभकारी उपचार है। एक घंटे बाद नहालें। इससे दौरों में कमी होकर रोगी स्वस्थ अनुभव करेगा।
-मानसिक तनाव और शारिरिक अति श्रम रोगी के लिये नुकसान देह है। इनसे बचना जरूरी है।
-मिर्गी रोगी को २५० ग्राम बकरी के दूध में ५० ग्राम मेंहदी के पत्तों का रस मिलाकर नित्य प्रात: दो सप्ताह तक पीने से दौरे बंद हो जाते हैं। जरूर आजमाएं।
-रोजाना तुलसी के २० पत्ते चबाकर खाने से रोग की गंभीरता में गिरावट देखी जाती है।
-पेठा मिर्गी की सर्वश्रेष्ठ घरेलू चिकित्सा में से एक है। इसमें पाये जाने वाले पौषक तत्वों से मस्तिष्क के नाडी-रसायन संतुलित हो जाते हैं जिससे मिर्गी रोग की गंभीरता में गिरावट आ जाती है। पेठे की सब्जी बनाई जाती है लेकिन इसका जूस नियमित पीने से ज्यादा लाभ मिलता है। स्वाद सुधारने के लिये रस में शकर और मुलहटी का पावडर भी मिलाया जा सकता है।
-गाय के दूध से बनाया हुआ मक्खन मिर्गी में फ़ायदा पहुंचाने वाला उपाय है। दस ग्राम नित्य खाएं।
गर्भवती महिला को पड़ने वाला मिर्गी का दौरा जच्चा और बच्चा दोनों के लिए तकलीफदायक हो सकता है। उचित देखभाल और योग्य उपचार से वह भी एक स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है।
मिर्गी की स्थिति में गर्भ धारण करने में कोई परेशानी नहीं है। इस दौरान गर्भवती महिलाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार दवाइयां लें। मां के रोग से होने वाले बच्चे पर कोई असर नहीं पड़ता। गर्भवती महिला समय-समय पर डॉक्टर से जांच कराती रहें, पूरी नींद लें, तनाव में न रहें और नियमानुसार दवाइयां लेती रहें। इससे उन्हें मिर्गी की परेशानी नहीं होगी। गर्भवती महिला के साथ रहने वाले सदस्यों को भी इस रोग की थोड़ी जानकारी होना आवश्यक है।
शुक्रवार, 21 मार्च 2014
जीभ खोलती है आपकी सफाई की पोल!
| ||
मोटापा एवं अनेक रोगों से मुक्त होने का अचूक उपाय
मोटापा एवं अनेक रोगों से मुक्त होने का अचूक उपाय
मेथी दाना -250 ग्राम ,
अजवाइन-100 ग्राम ,
काली जीरी-50 ग्राम ।
उपरोक्त तीनो चीज़ों को साफ़ करके हल्का सा सेंक लें ,फिर तीनों को मिलाकर मिक्सर मेंइसका पॉवडरबना लें और कांच की किसी शीशी में भर कर रख लें । रात को सोते समय 1/2 चम्मच पॉवडर एक गिलास कुनकुने पानी के साथ नित्य लें ,इसके बाद कुछ भी खाना यापीना नहीं है ।इसे सभी उम्र के लोग ले सकते हैं
फायदा पूर्ण रूप से 80-90 दिन में हो जायेगा ।
लाभ :-
इस चूर्ण को नित्य लेने से शरीर के कोने -कोने में जमा पड़ी सभी गंदगी (कचरा )मल और पेशाब द्वारा निकलजाता है ,
फ़ालतू चर्बी गल जाती है ,
चमड़ी की झुर्रियां अपने आप दूर हो जाती है ,
और शरीर तेजस्वी और फुर्तीला होजाता है ।
अन्य लाभ इस प्रकार हैं ----------
1. गठिया जैसा ज़िद्दी रोग दूर हो जाताहै ।
2. शरीर की रोग प्रतिकारक शक्ति को बढ़ाता है ।
3. पुरानी कब्ज़ से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है ।
4. रक्त -संचार शरीर में ठीक से होने लगता है ,शरीर की रक्त -नलिकाएं शुद्ध हो जाती हैं ,रक्त में सफाई और शुद्धता की वृद्धि होती है ।
5. ह्रदय की कार्य क्षमता में वृद्धिहोती है ,कोलेस्ट्रोलकम होता है ,जिस से हार्ट अटैक का खतरा नहीं रहता |
6. हड्डियां मजबूत होती हैं ,कार्य करने की शक्तिबढ़ती हैं ,स्मरण शक्ति में भी वृद्धि होतीहै ।थकान नहीं होती है ।
7. आँखों का तेज़ बढ़ता है ,बहरापन दूर होता है ,बालों का भी विकास होता है,दांत मजबूत होते हैं ।
8. भूतकाल में सेवन की गयी एलोपैथिकदवाओं के साइड -इफेक्ट्स से मुक्ति मिलतीहै ।
9. खाना भारी मात्रा में या ज्यादाखाने के बाद भी पच जाता है (इसका मतलब येनहीं है कि आप जानबूझ कर ज्यादा खा ले) ।
10. स्त्रियों का शरीर शादी के बादबेडौल नहीं होता ,शेप में रहता है ,,शादी के बाद होने वालीतकलीफें दूर होती हैं ।
11. चमड़ी के रंग में निखार आता है ,चमड़ी सूख जाना ,झुर्रियां पड़ना आदि चमड़ी के रोगों से शरीर मुक्त रहता है ।
12. शरीर पानी ,हवा ,धूपऔर तापमान द्वारा होने वाले रोगों से मुक्त रहता है
13. डाइबिटीज़ काबू में रहती है ,चाहें तोइसकी दवा ज़ारी रख सकते हैं।
14. कफ से मुक्ति मिलती है ,नपुंसकता दूर होती है,,व्यक्ति का तेज़ इस से बढ़ता है ,जल्दी बुढ़ापा नहीं आता ,। उम्र बढ़ जाती है |
15. कोई भी व्यक्ति ,किसी भी उम्र का हो ,इस चूर्ण का सेवन कर सकता
है,मात्रा का ध्यान रखें ।
मेथी दाना -250 ग्राम ,
अजवाइन-100 ग्राम ,
काली जीरी-50 ग्राम ।
उपरोक्त तीनो चीज़ों को साफ़ करके हल्का सा सेंक लें ,फिर तीनों को मिलाकर मिक्सर मेंइसका पॉवडरबना लें और कांच की किसी शीशी में भर कर रख लें । रात को सोते समय 1/2 चम्मच पॉवडर एक गिलास कुनकुने पानी के साथ नित्य लें ,इसके बाद कुछ भी खाना यापीना नहीं है ।इसे सभी उम्र के लोग ले सकते हैं
फायदा पूर्ण रूप से 80-90 दिन में हो जायेगा ।
लाभ :-
इस चूर्ण को नित्य लेने से शरीर के कोने -कोने में जमा पड़ी सभी गंदगी (कचरा )मल और पेशाब द्वारा निकलजाता है ,
फ़ालतू चर्बी गल जाती है ,
चमड़ी की झुर्रियां अपने आप दूर हो जाती है ,
और शरीर तेजस्वी और फुर्तीला होजाता है ।
अन्य लाभ इस प्रकार हैं ----------
1. गठिया जैसा ज़िद्दी रोग दूर हो जाताहै ।
2. शरीर की रोग प्रतिकारक शक्ति को बढ़ाता है ।
3. पुरानी कब्ज़ से हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती है ।
4. रक्त -संचार शरीर में ठीक से होने लगता है ,शरीर की रक्त -नलिकाएं शुद्ध हो जाती हैं ,रक्त में सफाई और शुद्धता की वृद्धि होती है ।
5. ह्रदय की कार्य क्षमता में वृद्धिहोती है ,कोलेस्ट्रोलकम होता है ,जिस से हार्ट अटैक का खतरा नहीं रहता |
6. हड्डियां मजबूत होती हैं ,कार्य करने की शक्तिबढ़ती हैं ,स्मरण शक्ति में भी वृद्धि होतीहै ।थकान नहीं होती है ।
7. आँखों का तेज़ बढ़ता है ,बहरापन दूर होता है ,बालों का भी विकास होता है,दांत मजबूत होते हैं ।
8. भूतकाल में सेवन की गयी एलोपैथिकदवाओं के साइड -इफेक्ट्स से मुक्ति मिलतीहै ।
9. खाना भारी मात्रा में या ज्यादाखाने के बाद भी पच जाता है (इसका मतलब येनहीं है कि आप जानबूझ कर ज्यादा खा ले) ।
10. स्त्रियों का शरीर शादी के बादबेडौल नहीं होता ,शेप में रहता है ,,शादी के बाद होने वालीतकलीफें दूर होती हैं ।
11. चमड़ी के रंग में निखार आता है ,चमड़ी सूख जाना ,झुर्रियां पड़ना आदि चमड़ी के रोगों से शरीर मुक्त रहता है ।
12. शरीर पानी ,हवा ,धूपऔर तापमान द्वारा होने वाले रोगों से मुक्त रहता है
13. डाइबिटीज़ काबू में रहती है ,चाहें तोइसकी दवा ज़ारी रख सकते हैं।
14. कफ से मुक्ति मिलती है ,नपुंसकता दूर होती है,,व्यक्ति का तेज़ इस से बढ़ता है ,जल्दी बुढ़ापा नहीं आता ,। उम्र बढ़ जाती है |
15. कोई भी व्यक्ति ,किसी भी उम्र का हो ,इस चूर्ण का सेवन कर सकता
है,मात्रा का ध्यान रखें ।
सोमवार, 3 फ़रवरी 2014
शुक्रवार, 31 जनवरी 2014
जीवन दूत बने राजधानी के रक्तदाता
जीवन दूत बने राजधानी के रक्तदाता
इससे बड़ा कोई दान नहीं...
पीजीआई के ही वीके सिंह रक्तदान को सबसे बड़ा दान समझते हैं। वे अब तक लगभग ८५ बार रक्तदान कर चुके हैं। वो कहते हैं कि बस मन ने कहा, रक्तदान करना चाहिए और ब्लड बैंक पहुंच गया। इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज भी जारी है। हर तीन माह में रक्तदान करता हूं। वीके सिंह का कहना है कि यदि शरीर में अपने आप बनने वाले खून की एक यूनिट देकर आप चार लोगों के जीवन की रक्षा में भागीदार बनते हैं तो इससे बड़ा कार्य और क्या हो सकता है। मेरी नजर में इससे बड़ा कोई दान नहीं है। ऐसे बहुत से मरीज होते हैं जिनके ऑपरेशन या फिर जान बचाने के लिए रक्तदाता नहीं मिलते। ब्लड कैंसर से जूझ रहे लोग और थौलीसीमिया पीड़ित बच्चों को भी हर सप्ताह खून की जरूरत पड़ती है। ऐसे लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान से ही मदद मिलती है। बस, इसी एक सोच ने रक्तदान करने की प्रेरणा दी।
रक्तदाताओं के सचिन हैं आरके भौमिक
आरके भौमिक रक्तदाताओं के च्सचिनज् माने जाते हैं। वो अब तक १०५ बार रक्तदान कर चुके हैं। वैसे तो वो पुलिस विभाग में हैं, लेकिन खाकी वर्दी के पीछे उनका एक अलग ही चेहरा है। वो बताते हैं कि १९८४ में उत्तरकाशी में आए भूकंप में घायल लोगों की मदद के लिए पहली बार रक्तदान किया था। तब से आज तक रक्तदान करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वो अब तक १०५ बार रक्तदान कर चुके हैं। उनका बेटा अभिषेक भौमिक भी वर्ष २००८ से रक्तदान कर रहा है और अब तक लगभग १८ बार रक्तदान कर चुका है। दोनों ही ईश्वर चाइल्ड फाउंडेशन और भारत सेवाश्रम कोलकाता से जुड़े हैं। ये संस्थाएं नि:सहाय और कैंसर पीड़ित बच्चों की मदद करती हैं। भौमिक का कहना है कि युवाओं को दूसरों को जीवन दान देने वाले इस पुनीत कार्य के लिए आगे आना चाहिए। लोग तरह-तरह का दान देते हैं। इसे भी एक दान बनाएं। क्योंकि एक यूनिट रक्त बहुत कीमती है, जो चार लोगों की जान बचाता है।
जिम्मेदारी बन गया रक्तदान
घर और ऑफिस की तरह ही अब रक्तदान भी मेरी जिम्मेदारी बन चुका है। रेयर बी निगेटिव ग्रुप होने के कारण उनका रक्तदान करना और अधिक महत्वपूर्ण है। यह कहना है मौसम विभाग में राजभाषा अधिकारी कल्पना श्रीवास्तव का। वे ४ जून, २००५ को अखबार में पढ़कर पहली बार केजीएमयू के ब्लड बैंक में रक्तदान के लिए पहुंची थी। तब से अब तक ३० बार रक्तदान कर चुकी हैं। उन्होंने बताया कि ब्लड कैंसर से पीड़ित बच्चों को समय-समय पर रक्त की जरूरत होती है। उनका इलाज कराते-कराते आर्थिक रूप से टूट चुके माता-पिता की इतनी क्षमता नहीं होती कि वो बार-बार खून की व्यवस्था कर पाएं। ऐसे ही बच्चों की मदद के लिए ईश्वर फाउंडेशन से जुड़ी और लगातार रक्तदान कर रही हैं। उन्होंने बताया कि पिता, भाई और बहन भी निगेटिव ग्रुप के हैं। भाई भी समय-समय पर रक्तदान करते हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य ग्रुप के लोग रक्तदान के लिए बहुत हैं, जिसका भी रेयर ग्रुप है उसे रक्तदान के लिए स्वयं ही आगे आना चाहिए। क्योंकि कभी उसको भी रक्त की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में उसकी मदद कौन करेगा।
शरीर के लिए भी फायदेमंद
रक्तदान शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। क्योंकि रक्तदान के बाद शरीर में कई नई कोशिकाएं बनती हैं, जिससे शरीर को काफी फायदा होता है। यह कहना है पीजीआई के टेक्निकल ऑफिसर डीके सिंह का। सिंह ने केजीएमयू में डिप्लोमा करते समय १९८४ में पहली बार रक्तदान किया था। इसके बाद १९८८ में पीजीआई में नियुक्ति मिल गई, लेकिन रक्तदान का सिलसिला लगातार जारी रहा। वे बताते है कि १९८४ से अब तक ८८ बार रक्तदान कर चुका हूं। उनकी पत्नी और बेटा जयंत भी इस बेमिसाल कार्य से जुड़े हुए हैं। बेटा लगभग दो साल से रक्तदान कर रहा है और पत्नी ने ७ मार्च को ही रक्तदान किया था। डीके सिंह बताते है कि वे एफरेसिस भी कई बार करा चुके हैं। इसमें ब्लड तो शरीर में वापस आ जाता है, लेकिन मशीन प्लेटलेट्स को अलग कर लेती है। उन्होंने बताया कि रक्तदाता दिवस पर यूपी राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी उन्हें सम्मानित करेगी।
श्चद्दद्ब ठ्ठद्ग द्मद्ब4ड्ड १२०० द्यद्बद्दश श्चद्गह्म् ह्यह्वह्म्1द्ग4
ड्ढ4 स्रह्म् ड्डह्लह्वद्य
४० फीसदी से पूछा ही नहीं जाता, रक्तदान करोगे क्या?
एसजीपीजीआई के सर्वे में सामने आए रोचक तथ्य, ९० फीसदी से ज्यादा दोबारा रक्तदान के इच्छुक
यह भ्रांतियां और बाधाएं भी रोक रहीं रक्तदान से
•कुल लोगों में
४.६६त्न
का मानना कि रक्तदान करेंगे तो नपुंसक हो जाएंगे, जबकि ऐसा नहीं होता है।
•वहीं
४.२५त्न
का मानना था कि इससे वे हमेशा के लिए कमजोर हो जाएंगे, यह भी गलत है। दान किया गया रक्त हमारा शरीर कुछ ही घंटों में फिर बना लेता है।
•कभी रक्तदान नहीं करने वालों में
६.५०त्न
को रक्तदान में लगने वाले ५ से ७ मिनट बोरिंग और लंबे लगते हैं, इसलिए वे रक्तदान नहीं करते।
•इसी किस्म के
४.२५त्न
लोगों का मानना है कि उनका रक्त बेकार चला जाएगा।
•इसी श्रेणी के
६.२५त्न
इसलिए कभी रक्तदान नहीं करते क्योंकि रक्तदान करने की जगह उनके घर से दूर पड़ती है।
२२.७५त्न में गलत धारणा कि सेहत को नुकसान होगा
जहां रक्तदान नहीं करने वालों में ४०.७५त्न ने बताया कि उनसे रक्तदान के लिए कभी पूछा ही नहीं गया तो वहीं २२.७५ प्रतिशत में यह गलत धारणा है कि रक्तदान से उनकी सेहत को नुकसान होगा। ३.७५ फीसदी जहां सूई चुभने के डर से रक्तदान नहीं करना चाहते तो ५.५० फीसद में धारणा है कि यह दर्द भरी प्रक्रिया है। ४.२५ प्रतिशत का मानना था कि उनका रक्त बेकार चला जाएगा, ६.२५ फीसद सिर्फ इसलिए कभी रक्तदान नहीं करते क्योंकि रक्तदान करने की जगह उनके घर से दूर है। इन ४०० लोगों में से ५७.२५ प्रतिशत ने कहा कि अगर जरूरत पड़े तो वे रक्तदान जरूर करेंगे, वहीं १३.२५ प्रतिशत लोग आज भी अज्ञान की गिरफ्त में इतने उलझे हैं कि वे कभी रक्तदान नहीं करना चाहते।
समाधानों पर क्या कहता है सर्वे
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार आज राष्ट्रीय स्तर पर रक्तदान को लोकप्रिय करने के लिए अभियान छेड़ने की जरूरत है। अमेरिका में भी कुछ दशकों पहले तक रक्तदान को लेकर भ्रांतियां दूर करने के लिए इसी किस्म के अभियान की शुरुआत की गई थी। वहीं ऐसे लोग जो स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं उन्हें प्रेरित करने की जरूरत है, क्योंकि उनमें अपनी बीमारियों के बारे में झूठ बोलने जैसी खराबी नहीं होती जो गैरकानूनी रूप से रक्त बेचने वालों में पाई गई है। वहीं ८५ प्रतिशत रक्तदान करने वाले अखबारों और टेलीविजन की वजह से प्रेरित होकर रक्तदाता बने, ऐसे में इनके जरिए और प्रचार-प्रसार की भी जरूरत है।
इससे बड़ा कोई दान नहीं...
पीजीआई के ही वीके सिंह रक्तदान को सबसे बड़ा दान समझते हैं। वे अब तक लगभग ८५ बार रक्तदान कर चुके हैं। वो कहते हैं कि बस मन ने कहा, रक्तदान करना चाहिए और ब्लड बैंक पहुंच गया। इसके बाद जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज भी जारी है। हर तीन माह में रक्तदान करता हूं। वीके सिंह का कहना है कि यदि शरीर में अपने आप बनने वाले खून की एक यूनिट देकर आप चार लोगों के जीवन की रक्षा में भागीदार बनते हैं तो इससे बड़ा कार्य और क्या हो सकता है। मेरी नजर में इससे बड़ा कोई दान नहीं है। ऐसे बहुत से मरीज होते हैं जिनके ऑपरेशन या फिर जान बचाने के लिए रक्तदाता नहीं मिलते। ब्लड कैंसर से जूझ रहे लोग और थौलीसीमिया पीड़ित बच्चों को भी हर सप्ताह खून की जरूरत पड़ती है। ऐसे लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान से ही मदद मिलती है। बस, इसी एक सोच ने रक्तदान करने की प्रेरणा दी।
रक्तदाताओं के सचिन हैं आरके भौमिक
आरके भौमिक रक्तदाताओं के च्सचिनज् माने जाते हैं। वो अब तक १०५ बार रक्तदान कर चुके हैं। वैसे तो वो पुलिस विभाग में हैं, लेकिन खाकी वर्दी के पीछे उनका एक अलग ही चेहरा है। वो बताते हैं कि १९८४ में उत्तरकाशी में आए भूकंप में घायल लोगों की मदद के लिए पहली बार रक्तदान किया था। तब से आज तक रक्तदान करते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि वो अब तक १०५ बार रक्तदान कर चुके हैं। उनका बेटा अभिषेक भौमिक भी वर्ष २००८ से रक्तदान कर रहा है और अब तक लगभग १८ बार रक्तदान कर चुका है। दोनों ही ईश्वर चाइल्ड फाउंडेशन और भारत सेवाश्रम कोलकाता से जुड़े हैं। ये संस्थाएं नि:सहाय और कैंसर पीड़ित बच्चों की मदद करती हैं। भौमिक का कहना है कि युवाओं को दूसरों को जीवन दान देने वाले इस पुनीत कार्य के लिए आगे आना चाहिए। लोग तरह-तरह का दान देते हैं। इसे भी एक दान बनाएं। क्योंकि एक यूनिट रक्त बहुत कीमती है, जो चार लोगों की जान बचाता है।
जिम्मेदारी बन गया रक्तदान
घर और ऑफिस की तरह ही अब रक्तदान भी मेरी जिम्मेदारी बन चुका है। रेयर बी निगेटिव ग्रुप होने के कारण उनका रक्तदान करना और अधिक महत्वपूर्ण है। यह कहना है मौसम विभाग में राजभाषा अधिकारी कल्पना श्रीवास्तव का। वे ४ जून, २००५ को अखबार में पढ़कर पहली बार केजीएमयू के ब्लड बैंक में रक्तदान के लिए पहुंची थी। तब से अब तक ३० बार रक्तदान कर चुकी हैं। उन्होंने बताया कि ब्लड कैंसर से पीड़ित बच्चों को समय-समय पर रक्त की जरूरत होती है। उनका इलाज कराते-कराते आर्थिक रूप से टूट चुके माता-पिता की इतनी क्षमता नहीं होती कि वो बार-बार खून की व्यवस्था कर पाएं। ऐसे ही बच्चों की मदद के लिए ईश्वर फाउंडेशन से जुड़ी और लगातार रक्तदान कर रही हैं। उन्होंने बताया कि पिता, भाई और बहन भी निगेटिव ग्रुप के हैं। भाई भी समय-समय पर रक्तदान करते हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य ग्रुप के लोग रक्तदान के लिए बहुत हैं, जिसका भी रेयर ग्रुप है उसे रक्तदान के लिए स्वयं ही आगे आना चाहिए। क्योंकि कभी उसको भी रक्त की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे में उसकी मदद कौन करेगा।
शरीर के लिए भी फायदेमंद
रक्तदान शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है। क्योंकि रक्तदान के बाद शरीर में कई नई कोशिकाएं बनती हैं, जिससे शरीर को काफी फायदा होता है। यह कहना है पीजीआई के टेक्निकल ऑफिसर डीके सिंह का। सिंह ने केजीएमयू में डिप्लोमा करते समय १९८४ में पहली बार रक्तदान किया था। इसके बाद १९८८ में पीजीआई में नियुक्ति मिल गई, लेकिन रक्तदान का सिलसिला लगातार जारी रहा। वे बताते है कि १९८४ से अब तक ८८ बार रक्तदान कर चुका हूं। उनकी पत्नी और बेटा जयंत भी इस बेमिसाल कार्य से जुड़े हुए हैं। बेटा लगभग दो साल से रक्तदान कर रहा है और पत्नी ने ७ मार्च को ही रक्तदान किया था। डीके सिंह बताते है कि वे एफरेसिस भी कई बार करा चुके हैं। इसमें ब्लड तो शरीर में वापस आ जाता है, लेकिन मशीन प्लेटलेट्स को अलग कर लेती है। उन्होंने बताया कि रक्तदाता दिवस पर यूपी राज्य एड्स कंट्रोल सोसाइटी उन्हें सम्मानित करेगी।
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४० फीसदी से पूछा ही नहीं जाता, रक्तदान करोगे क्या?
एसजीपीजीआई के सर्वे में सामने आए रोचक तथ्य, ९० फीसदी से ज्यादा दोबारा रक्तदान के इच्छुक
यह भ्रांतियां और बाधाएं भी रोक रहीं रक्तदान से
•कुल लोगों में
४.६६त्न
का मानना कि रक्तदान करेंगे तो नपुंसक हो जाएंगे, जबकि ऐसा नहीं होता है।
•वहीं
४.२५त्न
का मानना था कि इससे वे हमेशा के लिए कमजोर हो जाएंगे, यह भी गलत है। दान किया गया रक्त हमारा शरीर कुछ ही घंटों में फिर बना लेता है।
•कभी रक्तदान नहीं करने वालों में
६.५०त्न
को रक्तदान में लगने वाले ५ से ७ मिनट बोरिंग और लंबे लगते हैं, इसलिए वे रक्तदान नहीं करते।
•इसी किस्म के
४.२५त्न
लोगों का मानना है कि उनका रक्त बेकार चला जाएगा।
•इसी श्रेणी के
६.२५त्न
इसलिए कभी रक्तदान नहीं करते क्योंकि रक्तदान करने की जगह उनके घर से दूर पड़ती है।
२२.७५त्न में गलत धारणा कि सेहत को नुकसान होगा
जहां रक्तदान नहीं करने वालों में ४०.७५त्न ने बताया कि उनसे रक्तदान के लिए कभी पूछा ही नहीं गया तो वहीं २२.७५ प्रतिशत में यह गलत धारणा है कि रक्तदान से उनकी सेहत को नुकसान होगा। ३.७५ फीसदी जहां सूई चुभने के डर से रक्तदान नहीं करना चाहते तो ५.५० फीसद में धारणा है कि यह दर्द भरी प्रक्रिया है। ४.२५ प्रतिशत का मानना था कि उनका रक्त बेकार चला जाएगा, ६.२५ फीसद सिर्फ इसलिए कभी रक्तदान नहीं करते क्योंकि रक्तदान करने की जगह उनके घर से दूर है। इन ४०० लोगों में से ५७.२५ प्रतिशत ने कहा कि अगर जरूरत पड़े तो वे रक्तदान जरूर करेंगे, वहीं १३.२५ प्रतिशत लोग आज भी अज्ञान की गिरफ्त में इतने उलझे हैं कि वे कभी रक्तदान नहीं करना चाहते।
समाधानों पर क्या कहता है सर्वे
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार आज राष्ट्रीय स्तर पर रक्तदान को लोकप्रिय करने के लिए अभियान छेड़ने की जरूरत है। अमेरिका में भी कुछ दशकों पहले तक रक्तदान को लेकर भ्रांतियां दूर करने के लिए इसी किस्म के अभियान की शुरुआत की गई थी। वहीं ऐसे लोग जो स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं उन्हें प्रेरित करने की जरूरत है, क्योंकि उनमें अपनी बीमारियों के बारे में झूठ बोलने जैसी खराबी नहीं होती जो गैरकानूनी रूप से रक्त बेचने वालों में पाई गई है। वहीं ८५ प्रतिशत रक्तदान करने वाले अखबारों और टेलीविजन की वजह से प्रेरित होकर रक्तदाता बने, ऐसे में इनके जरिए और प्रचार-प्रसार की भी जरूरत है।
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