गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

विवाह संस्कार है फंक्शन मत बनाए

 

विवाह संस्कार है फंक्शन मत   बनाए 


सनातन में मेहदी कोई संस्कार नहीं लेकिन हो रहा है





संस्कार केवल विवाह है लेकिन विवाह फंक्शन हो गया है। आज कल मेहदी पता नहीं कहा से आ गया है। सारे  विवाह का सत्यानाश फोटो  सेशन में हों रहा है। पंडित जी रहा देखते रहते है मंडप में पंडित जी से जल्दी करने को कहते है। संस्कार को फंक्शन मत बनाए। एल डी ए कॉलोनी सेक्टर एल में आयोजित भागवत कथा में श्री राम शरण शास्त्री ने कहा कि रामायण का ठेका हो रहा है। कोई खुद पढ़ने वाला नहीं है। बच्चों और खुद पांच दस दोहा पढ़वाए। संस्कार जिंदा रखिए। बहुत तेजी से संस्कार का हनन हो रहा है। सुंदरता के लिए महिलाएं मां गौरी और पुरुष अश्विनी कुमार की पूजा करे । नारद जी ने अश्वनी कुमार की पूजा किया कहा जेहि विधि नाथ होय हित मोरा करहूं वेगी दास में तोरा ,,,अश्वनी कुमार ने वही रूप दिया जिसमें नारद जी का हित था। शास्त्री जी ने कहा कि हम जहां रहे वही की बात करे। पुत्र के सामने दूसरे के पुत्र , पत्नी के सामने दूसरे स्त्री की बात न करे। कथा में मानवेंद्र सिंह, पीयूष श्रीवास्तव, सत्य प्रकाश गुप्ता, संजय गुप्ता, अमन मिश्रा , मनीषा मिश्रा, प्रीति चौरसिया,मधु सिंह, ईशान यादव,राकेश श्रीवास्तव सहित तमाम लोग के सहयोग से साहूहिक कथा हो रही है।

आज स्त्री उतनी आकर्षक नहीं है, जितनी सदा थी

 




इतनी मत मिल जाना किसी को कि अमोह पैदा हो जाए। बस, मिलना और न मिलना, इनके बीच सदा खेल को चलाते रहना। पास बुलाना किसी को और दूर हो जाना। कोई निकट आ पाए कि सरक जाना। बुलाना भर, मिल ही मत जाना, क्योंकि मिल ही गए कि मोह नष्ट हो जाता है। व


स्त्रियां थीं पृथ्वी की घूंघट में दबी, अंधेरे में छिपी। पति भी नहीं देख पाता था सूरज की रोशनी में। कभी खुले में बात भी नहीं कर पाता था। अपनी पत्नी से भी बात चोरी से ही होती थी, रात के अंधेरे में, वह भी खुसुर—फुसुर। क्योंकि सारा बड़ा परिवार होता था, कोई सुन न ले! आकर्षण गहरा था, मोह जिंदगीभर चलता था।


स्त्री उघड़ी, परदा गया—अच्छा हुआ, स्त्री के लिए बहुत अच्छा हुआ—सूरज की रोशनी आई। लेकिन साथ ही मोह क्षीण हुआ। स्त्री और पुरुष आज कम मोहग्रस्त हैं। आज स्त्री उतनी आकर्षक नहीं है, जितनी सदा थी। और यूरोप और अमेरिका में और भी अनाकर्षक हो गई है, क्योंकि चेहरा ही नहीं उघड़ा, पूरा शरीर भी उघड़ा। आज यूरोप और अमेरिका के समुद्र—तट पर स्त्री करीब—करीब नग्न है, पास से चलने वाला रुककर भी तो नहीं देखता, पास से गुजरने वाला ठहरकर भी तो नहीं देखता कि नग्न स्त्री है।


कभी आपने देखा, बुरके में ढकी औरत जाती हो, तो पूरी सड़क उत्सुक हो जाती है। ढके का आकर्षण है, क्योंकि ढके में बाधा है। जहां बाधा है, वहां मोह है। जहां बाधा नहीं है, वहां मोह नहीं है। स्त्री और पुरुष का आकर्षण जितना सेक्यूअल है, जितना कामुक है, उससे ज्यादा सोशल है, कल्वरल है। जितना ज्यादा काम से पैदा हुआ है, उतना काम में डाली गई सामाजिक बाधाओं से पैदा हुआ है।


अब मैं मानता हूं कि आज नहीं कल, पचास साल के भीतर, सारी दुनिया में घूंघट वापस लौट सकता है। आज कहना बहुत मुश्किल मालूम पड़ता है, यह भविष्यवाणी करता हूं पचास साल में घूंघट वापस लौट आएगा। क्योंकि स्त्री—पुरुष इतनी अनाकर्षक हालत में जी न सकेंगे। वे आकर्षण फिर पैदा करना चाहेंगे। आने वाले पचास वर्षों में स्त्रियों के वस्त्र फिर बड़े होंगे, फिर उनका शरीर ढकेगा।


बर्ट्रेड रसेल ने लिखा है कि जब वह बच्चा था, तो विक्टोरियन युग समाप्त हो रहा था। और स्त्रियों के पैर का अंगूठा भी देखना मुश्किल था। घाघरा ऐसा होता था, जो जमीन छूता था। तो बर्ट्रेंड रसेल ने लिखा है कि अगर किसी स्त्री के पैर का अंगूठा भी दिख जाता था, तो चित्त में बिजली कौंध जाती थी। और उसने लिखा है कि अब कल्पना करने को भी कुछ नहीं बचा है। स्त्री पूरी दिखाई पड़ जाती है और चित्त में कोई बिजली नहीं कौंधती।


नग्न स्त्री उतनी आकर्षक नहीं है, नग्न पुरुष उतना आकर्षक नहीं है।